इस कंपनी को सौंपा जा सकता है उत्पादन का जिम्मा
स्मार्ट रिस्टबैंड क्वारंटीन किए गए संक्रमितों को भी पहनाए जाएंगे ताकि उन्हें ट्रैक किया जा सके. साथ ही इससे स्वास्थ्यकर्मियों और इमरजेंसी सर्विस से जुडे लोगों को भी काफी मदद मिलेगी. रिस्टबैंड परियोजना का काम सरकारी कंपनी ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड को सौंपा जा सकता है. ये कंपनी भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करती है. मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी का कहना है कि तकनीक की मदद से इन समस्याओं से निपटा जा सकता है. कंपनी कोरोना संक्रमण से निपटने में सरकार की मदद करना चाहती है. कंपनी अगले हफ्ते अस्पतालों और राज्य सरकारों के लिए रिस्टबैंड डिजाइन पेश करेगी. इसके बाद उत्पादन के लिए स्टार्ट-अप के साथ काम करेगी. कंपनी के कंपनी के चेयरमैन और एमडी जॉर्ज कुरुविला ने कहा कि मई में रिस्टबैंड की डिलिवरी शुरू कर दी जाएगी.
तापमान और लोकेशन को किया जा सकता है ट्रैक कुरुविला ने कहा कि रिस्टबैंड लोगों के शरीर के तापमान की जानकारी देगा. इससे साफ पता चलेगा कि पहनने वाले व्यक्ति को बुखार है या नहीं. साथ ही बैंड में जियो फेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे पता चलता रहेगा कि क्वारंटीन में रखा गया व्यक्ति नियम तोडकर बाहर तो नहीं निकल रहा है. इसके लिए बैंड को मोबाइल जीपीएस की मदद लेनी होगी. हॉटस्पॉट इलाकों में इसका बेहारीन इस्तेमाल हो सकेगा. ऐसे इलाकों में स्थानीय प्रशासन के सामने चुनौती होती है कि घर-घर जाकर सैंपल ले, टेस्ट करें और फिर हर घर के हर व्यक्ति को ट्रैक करें. इस बैंड को हॉटस्पॉट एरिया को सील करने के बाद सभी घरों के हर सदस्य को पहनाया जाएगा. इसके बाद एक सर्वर की मदद से पता चलता रहेगा कि किस घर के किस व्यक्ति में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं. इसके बाद उसे तुंरत ट्रैक कर आइसोलेट किया जा सकेगा.

लोकेशन ट्रैक करने के लिए रिस्टबैंड यूजर के स्मार्टफोन के जीपीएस की मदद लेगा.
सेनेटाइज कर दूसरे इलाकों में हो सकेगा इस्तेमाल
सरकारी कंपनी के मुताबिक, रिस्टबैंड को सैनिटाइज कर दूसरी जगह के लोगों को इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जा सकेगा. इसके लिए रिस्टबैंड बांटने की जिम्मेदारी हॉटस्पॉट इलाके के नगर निगम को दी जा सकती है. एरिया रेड से ग्रीन जोन में आते ही इसे वापस लेकर दूसरे इलाके में इस्तेमाल के लिए दे जाए. रिस्टबैंड हाथ में पहने जाने वाली घड़ी की तरह होगा. ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड इसे बनाने वाली 4-5 भारतीय कंपनियों के संपर्क में है. रिस्टबैंड का कुछ हार्डवेयर बाहर से मंगाना होगा, जबकि सॉफ्टवेयर कंपनी के पास मौजूद है. इस प्रक्रिया में 10-15 दिन लगेंगे. कंपनी चाहती है कि इस बैंड की टेस्टिंग अस्पतालों में नर्स और डॉक्टरों पर की जाए. कारगर पाए जाने के बाद ही बैंड स्थानीय प्रशासन और सरकार को देने की तैयारी की जाए.
स्मार्ट रिस्टबैंड की ये हैं कुछ सीमाएं और खराबियां
स्मार्ट रिस्ट बैंड की कुछ सीमाएं और खराबियां भी हैं. सबसे पहली बात तो यही है कि जब 80 प्रतिशत से ज्यादा संक्रमितों में कोई लक्षण ही नजर नहीं आ रहा है तो ये बैंड कितना कारगर होगा. दरअसल, सिर्फ बुखार होने पर कोरोना वायरस की पुष्टि नहीं होती है. वहीं, अगर रिस्टबैंड पहना हुआ कोई व्यक्ति अपना स्मार्ट फोन घर या सेंटर में छोड़कर भाग जाए तो उसकी सही लोकशन पता लगाना नामुमकिन होगा. वहीं, कंपनी के मुताबिक, रिस्टबैंड के इस्तेमाल के लिए लोगों का कुछ ज्यादा डाटा लेना होगा. कोरोना को ट्रैक करने के लिए सरकार ने 2 अप्रैल को आरोग्य सेतु ऐप लांच किया., जिसे 6 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है. इस पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि इससे निजता का उलंघन होगा. ऐसे में ये रिस्टबैंड की नई तकनीक पर यही सवाल खड़े हो सकते हैं.

चे बैंड सिर्फ बॉडी टैम्प्रेचर बताएगा,जिससे संक्रमण का पता लगाना मुश्किल होगा. वहीं, अगर यूजर फोन छोड जाए तो उसे ट्रैक भी नहीं किया जा सकेगा.
निजता के उल्लंघन और डाटा चोरी का खतरा नहीं है
कंपनी का कहना है कि जब बैंड को सेनेटाइज करके दूसरे पर इस्तेमाल करने की बात की जा रही है तो निजता के अधिकार के उलंघन और डाटा चोरी का कोई सवाल ही नहीं है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक निजा के अधिकार के विशेषज्ञा सुबिमल भट्टाचार्या का कहना है कि अगर ऐसा है तो लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. वहीं, साइबर लॉ के जानकार पवन दुग्गल के मुताबिक किसी भी व्यक्ति का हेल्थ डेटा उसकी निजी और संवेदनशील जानकारी मानी जाती है. उसकी इच्छा के बिना उसे कहीं भी स्टोर नहीं कर सकते. उनके मुताबिक, अगर कोई कंपनी ऐसा कर रही है तो उसे स्पष्ट करना होगा कि डाटा कहां और कितने समय के लिए स्टोर किया जाएगा. साथ ही बताना होगा कि इसका इस्तेमाल कौन-कौन कर सकता है और किस-किस को उपलब्ध होगा.
हांगकांग और दक्षिण कोरिया में भी हो चुका है इस्तेमाल
भारत से पहले रिस्टबैंड का इस्तेमाल हांगकांग में भी किया जा चुका है. फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हांगकांग में क्वारंटीन में रहने वाले लोगों को वहां के प्रशासन ने स्मार्ट रिस्टबैंड पहनना अनिवार्य कर दिया था. तकरीबन 60 हजार लोगों को ऐसे बैंड पहनाए गए थे. न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण कोरिया ने भी ऐसे बैंड का इस्तेमाल लोगों को क्वारंटीन में ट्रैक करने के लिए किया था. दक्षिण कोरिया में क्वारंटीन में रहने वाले लोग प्रशासन को चकमा देने के लिए फोन छोड़कर क्वारंटीन सेंटर्स से बाहर जा रहे थे. इसलिए उन्हें इस तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ा. भारत में शुक्रवार शाम तक संक्रमितों की संख्या 23 हजार से ज्यादा हो चुकी है. वहीं, कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 723 हो चुकी है. वहीं, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कुछ सप्ताह बाद भारत में कोरोना वायरस का कहर चरम पर पहुंच सकता है.
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