दैनिक भास्कर
Nov 24, 2019, 12:18 PM IST
लाइफस्टाइल डेस्क. असम प्रकृति की गोद में बसा हुआ छोटा-सा प्रदेश है। यहां के लोग प्रकृति से जितना लेते हैं, उतना ही लौटा भी देते हैं। खाने में विविधता है, अपनापन है, तो स्थानीयता का ज़बरदस्त स्वाद भी है। यहां खाने की हरेक चीज का पूरा इस्तेमाल होता है और कोई भी चीज़ फेंकी नहीं जाती। जैसे केले के पेड़ और केले को ले लीजिए। केला, उसका फूल और तना तो सीधे खाने के काम आता है। वहीं पेड़ के पत्ते, जिसे स्थानीय भाषा में कोलपोतुवा कहते हैं, का इस्तेमाल नाश्ता आदि परोसने के लिए किया जाता है। केलों के छिलकों को सुखाकर उनको जलाया जाता है और फिर इसकी राख को पानी में डाला जाता है। फिर इस पानी को छानते हैं। छना हुआ यह काला पानी खार कहलाता है। कुछ लोग सीधे ही चावल या किसी भी अन्य असमी डिश में यह खार डालकर खाते हैं, तो कुछ साथ में थोड़ा सा खाने का तेल भी मिलाते हैं। यह खार असमी अस्मिता से इस कदर जुड़ा है कि कई बार असमी लोगों को ‘खार-खौआ’ भी कहा जाता है, हां यह असमी लोगों का बड़प्पन ही है कि वे इसका बुरा नहीं मानते। यहां फूड हिस्टोरियन और लेखक आशीष चोपड़ा से जानिए आसम खाने के बार में कुछ खास…
101 प्रकार की सब्जियां और भाजियां खाई जाती हैं
केले के अलावा कद्दू को ले लीजिए। इसके छिलके की सूखी सब्जी बन जाती है। बीजों को भूनकर खाते हैं तो पौधे की पत्तियां भी अलग से खाई जा सकती हैं। असम में एक समय पर 101 प्रकार की हरी सब्जियां और भाजियां खाई जाती थीं। फसल पकने के बाद मनाए जाने वाले बोहाग बिहू त्योहार के दौरान इन साग को मिलाकर खाना बनाया जाता था। परंपराएं लुप्त हुई हैं, पर अभी भी लाइ, लोफा, पालेंग, मटिकांडुरी, मानिमुनी, ढेकिया, धुरुन जैसी कई हरी सब्जियां मौजूद हैं। कोसु साग का काली मिर्च के साथ स्वाद बहुत अलहदा होता है।
अब जो चावल खाने में बच गए हैं, उन्हें भी फेंका नहीं जाता। उन्हें ठंडे पानीमें भिगोकर एक या दो रातों के लिए रख दिया जाता है। फरमेंटेशन के बाद इस चावल का कई तरीके से उपयोग होता है। असम की बात हो और मछलियां छोड़ दी जाएं, तो थोड़ी नाइंसाफी हो जाएगी। छोटी से लेकर बड़ी मछलियां लोग चाव से खाते हैं। चटपटी फिश करी मासोर टेंगा असम की खास करी है। खट्टापन लाने के लिए कई स्थानीय चीजें जैसे टेंगा, ठेकेरा, टेंगा मोरा, टमाटर, नींबू आदि मिलाई जाती हैं। मछली बनाने का एक खास तरीका भी है। मछलियों को केले के पत्तों में लपेटकर रख दिया जाता है। ताजी सरसों के पेस्ट से इसे मैरीनेट किया जाता है। केलों के पत्तों में दोबारा से लपेटकर मछलियां पकाई जाती हैं।
असम में कोई भी चीज़, जिसे मैश करके खाते हैं, उसे पितिका कहते हैं। माघ बिहू में जब फसलों का उत्सव मनाया जाता है, तब लोग खासतौर पर मीठा आलू, मुवा आलू, काठ आलू खाते हैं। यह प्रदेश फलों के मामले में भी बेहद समृद्ध है। अमरूद, लीची, जलपाई, कोला जामुम, रोबाब टेंगा (ग्रेपफ्रूट), अन्नानास, कोठाल (कटहल) भी प्रचुर मात्रा में मौजूद है। बहरहाल, असम और यहां के खानपान के बारे में बताने को इतना कुछ है कि बात शायद कभी खत्म ना हो। मैंने यहां के अचार, तामुल (तामुल पान) की चर्चा नहीं की है। राइस बीयर के अनोखे स्वाद के बारे में भी बात अधूरी है। डक रोस्ट, पीजन मीट के साथ हर्ब्स के केक के बारे में भी बहुत कुछ कहानी बाकी है। इनकी बात फिर कभी।