स्टडी में ये पता चला है कि शरीर में बने एंटीबॉडी की वजह से ठीक हो चुके कोरोना के मरीज फिर से बीमार नहीं पड़ सकते हैं.
शोधकर्ताओं को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि जो मरीज कोरोना वायरस (Coronavirus) से ठीक होने के बाद टेस्ट (Test) में दोबारा पॉजिटिव (Positive) आ रहे हैं वो संक्रामक नहीं हैं यानी उनसे दूसरों में कोरोना वायरस फैलने का खतरा नहीं है.
ठीक हो चुके कोरोना के मरीज फिर से बीमार नहीं पड़ सकते
आजतक में छपी खबर के अनुसार शोधकर्ताओं को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि जो मरीज कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद टेस्ट में दोबारा पॉजिटिव आ रहे हैं वो संक्रामक नहीं हैं यानी उनसे दूसरों में कोरोना वायरस फैलने का खतरा नहीं है. इसके अलावा स्टडी में ये भी पता चला है कि शरीर में बने एंटीबॉडी की वजह से ठीक हो चुके कोरोना के मरीज फिर से बीमार नहीं पड़ सकते हैं. वैज्ञानिकों ने यह स्टडी Covid-19 के उन 285 मरीजों पर की जो ठीक होने के बाद कोरोना वायरस के टेस्ट में पॉजिटिव आए थे. स्टडी में पाया गया कि इन मरीजों से दूसरे व्यक्तियों में किसी भी तरह का संक्रमण नहीं फैला और इनके वायरस सैंपल में भी जीवाणुओं की बढ़त नहीं हुई है. इससे पता चलता है कि ये मरीज गैर-संक्रामक थे या इनके अंदर मृत वायरस के कण मौजूद थे.
मरे और जिंदा वायरस के कणों के बीच अंतरये रिपोर्ट उन देशों के लिए एक सकारात्मक संकेत है जहां कोरोना वायरस के मरीज ठीक हो रहे हैं और वह लॉकडाउन खोलने की तरफ बढ़ रहे हैं. भारत उन्हीं देशों में से एक है. दक्षिण कोरिया की इस स्टडी से पता चलता है कि जो लोग Covid-19 से ठीक चुके हैं, वह सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों के नरम पड़ने के बाद भी उनसे कोरोना वायरस फैलने का कोई खतरा नहीं है. स्टडी के अनुसार दक्षिण कोरिया में स्वास्थ्य अधिकारी अब ठीक हो चुके कोरोना के मरीजों के दोबारा टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद भी उन्हें संक्रामक नहीं समझेंगे. पिछले महीने आए एक शोध में कहा गया था कि कोरोना वायरस के न्यूक्लिक एसिड के पीसीआर टेस्ट मरे और जिंदा वायरस के कणों के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं.
एंटीबॉडी वायरस के खिलाफ कुछ स्तर की सुरक्षा प्रदान करते हैं
हो सकता है कि वो शोध गलत धारणा दे रहे हों कि दोबारा टेस्ट में पॉजिटिव आने वाला व्यक्ति संक्रामक बना रहता है. वहीं एंटीबॉडी टेस्ट पर चल रही बहस में भी दक्षिण कोरिया का शोध मददगार साबित हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार एंटीबॉडी शायद वायरस के खिलाफ कुछ स्तर की सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन उनके पास अभी तक इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं है और न ही वह जानते हैं कि कोई भी इम्यूनिटी कितने समय तक शरीर में सही तरीके से काम करती है.
बच्चों में इम्युनोग्लोबुलिन का लेवल काफी हाई होता है
सिंगापुर के Duke-NUS Medical Schoolके शोधकर्ताओं में से एक डैनियल ई ने हाल ही में एक स्टडी में बताया था कि SARS संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों में 9 से 17 साल के बाद न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का पर्याप्त स्तर पाया गया था. Medrxiv में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, कुछ वैज्ञानिकों ने पाया कि बच्चों में इम्युनोग्लोबुलिन का लेवल काफी हाई होता है जो एंटीजन को पहचानने का काम करते हैं. स्टडी के अनुसार युवाओं में Covid-19 से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है. हालांकि इस स्टडी की अभी समीक्षा नहीं की जा सकी है.
आइसोलेशन के बाद कोरोना रि-पॉजिटिव केस
दक्षिण कोरिया के इस स्टडी के बाद अधिकारियों ने कहा कि संशोधित प्रोटोकॉल के तहत, कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीज अगर अपना आइसोलेशन पीरियड पूरा कर चुके हैं तो उन्हें अपने काम पर या स्कूल लौटने से पहले वायरस का नेगेटिव टेस्ट आने तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है. कोरिया के सीडीसी ने एक रिपोर्ट में कहा है कि नए प्रोटोकॉल के तहत, आइसोलेशन पूरा करने वाले मरीजों का कोई और टेस्ट नहीं कराया जाएगा. एजेंसी ने कहा कि आइसोलेशन के बाद कोरोना रि-पॉजिटिव केस को अब पीसीआर रि-डिटेक्टेड केस कहा जाएगा.
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First published: May 21, 2020, 4:16 PM IST
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