आइए जानें कैसे उन्होंने 11 साल में 25 हजार करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी की…
(1) हो चुके हैं दो बार फेल- पंजाब में जन्मे दीपिंदर गोयल के माता-पिता दोनों टीचर थे. दीपिंदर छठवीं क्लास में फेल हो गए थे. ग्यारहवीं में भी वह फेल हो गए. इसके बाद उन्होंने पढ़ाई पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू कर दिया और पहली ही बार में IIT एग्जाम क्रेक कर लिया.

पंजाब में जन्मे दीपिंदर गोयल के माता-पिता दोनों टीचर थे. दीपिंदर छठवीं क्लास में फेल हो गए थे. (फाइल फोटो)
(2) ऐसे हुई शुरुआत- IIT दिल्ली से ग्रैजुएट होने के बाद दीपिंदर ने साल 2006 में मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी बेन एंड कंपनी में नौकरी शुरू की है. इसी दौरान स्टार्ट-अप का आइडिया आया. उन्होंने फूड स्टार्ट-अप शुरू किया.
>> साल 2007 में उस वक्त मार्केट में फूड डिलीवरी से संबंधित कोई भी स्टार्ट-अप काम नहीं कर रहा था. दीपिंदर का पहला स्टार्ट-अप फेल हो गया.
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>> इसके बाद आईआईटी के ही अपने एक दोस्त पंकज चड्ढा के साथ मिलकर उन्होंने रेस्टोरेंट्स के मेन्यू उठाकर स्कैन करने और नंबर अपलोड करने शुरू कर दिए.

साल 2008 में जोमैटो शुरू हुआ.
>> फूडीबे नाम का उनका यह स्टार्टअप थोड़ा बहुत चल निकला, नाम को लेकर ईबे से नोटिस मिला. इसके बाद दोनों ने फूडीबे नाम बदलकर जोमैटो कर दिया. इस तरह साल 2008 में जोमैटो शुरू हुआ.
>> आपको बता दें कि मौजूदा समय में उनकी कंपनी की वैल्यू करीब 25920 करोड़ रुपये हो गई है.
(3) नौकरी छोड़कर बिजनेस करना नहीं था आसान- उनके लिए अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़कर खुद का काम करने करने का फैसला लेना बिलकुल आसान नहीं था. उनका कहना है कि माता-पिता को अपने बिजनेस के लिए राजी करने में बहुत समय लगा. उनके माता-पिता शुरू में बिलकुल खुश नहीं थे.

उनके लिए अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़कर खुद का काम करने करने का फैसला लेना बिलकुल आसान नहीं था. (फाइल फोटो)
>> लेकिन उनकी पत्नी हमेशा साथ खड़ी रहीं. कंचन लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करती हैं. जब पति को स्टार्टअप में उनकी जरूरत महसूस होती है तो वे पूरा सहयोग देती हैं. वे दिल्ली यूनिवर्सिटी में मैथ्स प्रोफेसर हैं.
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(4) अपनी टीम से करते हैं बहुत प्यार- दीपिंदर अपनी टीम का बहुत ख्याल रखते हैं. उन्हें साथ जोड़े रखने के लिए बहुत प्रयास भी करते हैं. वे अपनी टीम को लेकर काफी प्रोटेक्टिव हैं.

वक्त के पाबंद है दीपिंदर
>> उनका मानना है कि लोगों को साथ जोड़े रखने के लिए सैलरी जरूरी है, लेकिन अगर वे अपना विज़न टीम के साथ बांटेंगे और उन्हें कंपनी का महत्वपूर्ण हिस्सा समझेंगे तो कोई कभी उनको छोड़कर कंपीटिटर के पास नहीं जाएगा.
(5) वक्त के पाबंद है दीपिंदर-अक्सर अपने ऑफिस में सुबह 8.30 पर मीटिंग करते हैं. मीटिंग में जो लेट आता है, उसे जुर्माना देना होता है और इस पैसे से फिर दफ्तर में पार्टी होती है.
>> इन दिनों दीपिंदर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में बने हुए हैं. अपने सेंस ऑफ ह्यूमर के कारण कुछ लोग पूछते हैं कि अपना ट्विटर अकाउंट वह खुद ही चलाते हैं या इसके लिए किसी को रखा हुआ है.
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